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सोमवार, जुलाई 18, 2011

खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार : अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

आजमगढ़ की धरती को यह सौभाग्य प्राप्त है की यहाँ तमाम साहित्यकारों और मनीषियों ने जन्म लिया और इसे कर्म-भूमि बने. उन्हीं में से एक हैं- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध'.अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार है। यह हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। 15 अप्रैल,1865 को आज़मगढ़ के निज़ामाबाद क़स्बे में जन्मे अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के पिता का नाम भोलासिंह और माता का नाम रुक्मणि देवी था। अस्वस्थता के कारण हरिऔध जी का विद्यालय में पठन-पाठन न हो सका अतः इन्होने घर पर ही उर्दू, संस्कृत, फारसी, बंगला एवं अंग्रेजी का अध्ययन किया। 1883 में आप निजामाबाद के मिडिल स्कूल के हेडमास्टर हो गए। 1890 में कानूनगो की परीक्षा पास करने के बाद आप कानूनगो बन गए। सन 1923 में पद से अवकाश लेने पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने । 16 मार्च ,सन 1947 को आपका निधन हो गया।

खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार माने जाने वाले 'हरिऔध' जी का सृजनकाल हिन्दी के तीन युगों में विस्तृत है- भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग। इसीलिये हिन्दी कविता के विकास में ‘हरिऔध’ जी की भूमिका नींव के पत्थर के समान है। उन्होंने संस्कृत छंदों का हिन्दी में सफल प्रयोग किया है। ‘प्रियप्रवास’ की रचना संस्कृत वर्णवृत्त में करके जहां उन्होंने खड़ी बोली को पहला महाकाव्य दिया, वहीं आम हिन्दुस्तानी बोलचाल में ‘चोखे चौपदे’, तथा ‘चुभते चौपदे’ रचकर उर्दू जुबान की मुहावरेदारी की शक्ति भी रेखांकित की। प्रियप्रवास और वैदेही वनवास आपके महाकाव्य हैं। चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, कल्पलता, बोलचाल, पारिजात और हरिऔध सतसई मुक्तक काव्य की श्रेणी में आते हैं। ठेठ हिंदी का ठाठ और अधखिला फूल नाम से आपने उपन्यास भी लिखे। इसके अतिरिक्त नाटक और आलोचना में भी आपने उल्लेखनीय योगदान दिया है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में हरिऔध जी का परिचय देते हुए लिखा है- “यद्यपि 'हरिऔध' जी इस समय खड़ी बोली के और आधुनिक विषयों के ही कवि प्रसिध्द हैं, पर प्रारंभकाल में ये भी पुराने ढंग की श्रृंगारी कविता बहुत सुंदर और सरस करते थे। इनके निवास स्थान निज़ामाबाद में सिख संप्रदाय के महंत बाबा सुमेरसिंह जी हिन्दी काव्य के बड़े प्रेमी थे। उनके यहाँ प्राय: कवि समाज एकत्र हुआ करता था, जिसमें उपाध्याय जी भी अपनी पूर्तियाँ पढ़ा करते थे। इनका हरिऔध उपनाम उसी समय का है। इनकी पुराने ढंग की कविताएँ ‘रसकलस’ में संगृहीत हैं जिसमें इन्होंने नायिकाओं के कुछ नए ढंग के भेद रखने का प्रयत्न किया है।''


हरिऔध जी ने ठेठ हिंदी का ठाठ, अधखिला फूल, हिंदी भाषा और साहित्य का विकास आदि ग्रंथ-ग्रंथों की भी रचना की, किंतु मूलतः वे कवि ही थे उनके उल्लेखनीय ग्रंथों में शामिल हैं: -

प्रिय प्रवास
वैदेही वनवास
पारिजात
रस-कलश
चुभते चौपदे,चौखे चौपदे
ठेठ हिंदी का ठाठ
अध खिला फूल
रुक्मिणी परिणय
हिंदी भाषा और साहित्य का विकास

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक को क्लिक करें.


4 टिप्‍पणियां:

  1. हरिऔध जी के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी आपने हिन्दी साहित्य के पाठकों को दी है। हरिऔध जी ने बाल साहित्य में भी महत्त्वपूर्ण योदान किया है।

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  2. हरिऔध जी के बारे में जानना सुखद लगा. कभी उनकी कविताएँ पढ़ी थीं कोर्स में.

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  3. अति-महत्वपूर्ण पोस्ट...

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  4. हरिऔध जी के बिना आजमगढ़ अधूरा है. शानदार पोस्ट. कृष्ण जी को बधाई.

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