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बुधवार, अगस्त 31, 2011

आजमगढ़ के रामनरेश यादव बने मध्य प्रदेश के गवर्नर

हाल ही में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे 83 वर्षीय रामनरेश यादव को मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है। आजमगढ़ के गांव आंधीपुर (अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में 1 जुलाई 1928 को जन्मे रामनरेश यादव एक शिक्षक और एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक रूप से प्रगति करते हुए आगे चलकर एक ईमानदार और मूल्यों की राजनीति करने वाले आम आदमी के मददगार और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कहलाए। पेशे से वकील श्री यादव राजनारायण के विचारों से प्रभावित हो जनता पार्टी से जुड़े। 1977 में आजमगढ़ लोकसभा सीट से जीतकर वे छठवीं लोकसभा के सदस्य बने।इसी दरमियाँ वह 23 जून 1977 को उप्र के मुख्यमंत्री बने और इस पद पर 28 जून 1979 तक रहे। बाद में श्री यादव कांग्रेस पार्टी से जुड़े और संगठन में विभिन्न पदों पर भी रहे।

सही मायनों में उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का कोई मुकाबला नही है उत्तर प्रदेश की राजनीति में दिग्गजों के बीच एक दिग्गज राजनीतिज्ञ का खिताब आज भी उनके पास है, बस फर्क इतना है कि आज के कई बड़े कहलाए जा रहे राजनेता माफियाओं, गुंडों और बदमाशों के नेता/सरगना कहे जाते हैं और रामनरेश यादव एक आम आदमी के और मूल्यों आधारित राजनीति के साथ चलने वाले नेता माने जाते हैं। भीड़ एवं सुरक्षा कर्मियों के घेरे में चौबीस घंटे रहने की महत्वकांक्षा उन पर कभी भी भारी नहीं पड़ सकी। जो लोग रामनरेश यादव के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से परिचित हैं वे इन लाइनों से जरूर सहमत होंगे। उद्योगपतियों की तरह अरबपति या खरबपति राजनेता बनने की होड़ में शामिल राजनेताओं से यदि रामनरेश यादव की तुलना की जाए तो सभी जानते हैं कि उन्होंने अकूत दौलत को छोड़कर नैतिक मूल्यों को अपनी पूंजी बनाया है वे अन्य नेताओं की तरह धनसंपदा के पीछे नही भागे, यही कारण है कि अपने राजनीतिक जीवन में वे कई बार उपेक्षा के शिकार भी हुए हैं। कहने वाले कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास जो कद्दावर नेता हैं या जिन्हें वज़नदार नेता कहा जाता है उनमें रामनरेश यादव का पड़ला काफी भारी है।

रामनरेश यादव का समाजवादी आंदोलन और भारतीय राजनीति में हमेशा विशिष्ट स्थान रहा है। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों के दुख-दर्द को बहुत करीब और गहराई से समझा है, डॉ लोहिया की विचारधारा से प्रेरित होने के नाते उनमें किसी के लिए तनिक भी भेदभाव नहीं दिखाई देता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से निकले रामनरेश यादव प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक एवं विचारक आचार्य नरेंद्र देव के प्रभाव में रहे हैं। पंडित मदनमोहन मालवीय और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन से उनका सामाजिक जीवन काफी प्रभावित है।

फ़िलहाल देर से ही सही, राम नरेश यादव जी की योग्यता के मद्देनजर उन्हें मध्य प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल बनाया जाना एक सुखद संकेत है . इस उपलब्धि पर हार्दिक बधाइयाँ !!

यदुकुल : राम शिव मूर्ति यादव

सोमवार, अगस्त 22, 2011

कृष्णजन्माष्टमी की लीला

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरापहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

श्रीकृष्णजन्माष्टमीका व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। इस दिन उपवास रखें तथा अन्न का सेवन न करें। समाज के सभी वर्ग भगवान श्रीकृष्ण के प्रादुर्भाव-महोत्सव को अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार उत्साहपूर्वक मनाएं। गौतमीतंत्रमें यह निर्देश है-

उपवास: प्रकर्तव्योन भोक्तव्यंकदाचन।
कृष्णजन्मदिनेयस्तुभुड्क्तेसतुनराधम:।
निवसेन्नरकेघोरेयावदाभूतसम्प्लवम्॥

अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है।

धार्मिक गृहस्थोंके घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं। भगवान के श्रीविग्रहका शृंगार करके उसे झूला झुलाया जाता है। श्रद्धालु स्त्री-पुरुष मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। अर्धरात्रिके समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। तदोपरांत श्रीविग्रहका षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खीरा चीर कर बालगोपाल की आविर्भाव-लीला करते हैं।

धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण का विधान भी बताया गया है। कृष्णाष्टमी की रात में भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मंत्र

ॐनमोभगवतेवासुदेवायका जाप अथवा श्रीकृष्णावतारकी कथा का श्रवण करें। श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने से उनका सामीप्य तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती, कपूर आदि से आरती करें तथा भगवान को भोग में निवेदित खाद्य पदार्थो को प्रसाद के रूप में वितरित करके अंत में स्वयं भी उसको ग्रहण करें।

आज जन्माष्टमी का व्रत करने वाले वैष्णव प्रात:काल नित्यकर्मो से निवृत्त हो जाने के बाद इस प्रकार संकल्प करें-

ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य शर्वरीनामसंवत्सरेसूर्येदक्षिणायनेवर्षतरैभाद्रपदमासेकृष्णपक्षेश्रीकृष्णजन्माष्टम्यांतिथौभौमवासरेअमुकनामाहं(अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्गसिद्धिद्वारा श्रीकृष्णदेवप्रीतयेजन्माष्टमीव्रताङ्गत्वेनश्रीकृष्णदेवस्ययथामिलितोपचारै:पूजनंकरिष्ये।

वैसे तो जन्माष्टमी के व्रत में पूरे दिन उपवास रखने का नियम है, परंतु इसमें असमर्थ फलाहार कर सकते हैं।

भविष्यपुराणके जन्माष्टमीव्रत-माहात्म्यमें यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सवकिया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराजके अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकत्र्ताभगवत्कृपाका भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थोंको पूर्वोक्त द्वादशाक्षरमंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ इस मंत्र का अधिकाधिक जप करें-

कृष्णायवासुदेवायहरयेपरमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशायगोविन्दायनमोनम:॥

उपर्युक्त मंत्र का नित्य जाप करते हुए सच्चिदानंदघनश्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में खुशियां वापस लौट आएंगी। घर में विवाद और विघटन दूर होगा।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्तिहटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।

व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनिबजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।

साभार : विकिपीडिया

!! कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को बधाइयाँ !!

बुधवार, अगस्त 10, 2011

प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच लेखनी को धार देते : कृष्ण कुमार यादव

प्रशासनिक सेवा में रहकर चिन्तन मनन करना एवं साहित्यिक लेखन करना अपने आप में एक विशिष्ट उपलब्धि है। राजकीय सेवा के दायित्वों का निर्वहन और श्रेष्ठ कृतियों की सर्जना का यह मणि-कांचन योग विरले ही मिलता है। कृष्ण कुमार यादव इस विरल योग के ही प्रतीक हैं। सम्प्रति आप भारतीय डाक सेवा के अधिकारी के रूप में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन के अलावा उनके कृतित्व में एक काव्यसंकलन "अभिलाषा" सहित दो निबंध-संकलन "अभिव्यक्तियों के बहाने" तथा "अनुभूतियाँ और विमर्श" एवं संपादित कृति "क्रांति-यज्ञ" का प्रकाशन शामिल है. इसके अलावा भारतीय डाक पर अंग्रेजी में लिखी उनकी पुस्तक ''India Post : 150 Glorious Years'' काफी चर्चित रही है. विभिन्न संकलनों में इनकी रचनाएँ सुशोभित हैं तो आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर, पोर्टब्लेयर से समय-समय पर कविताओं, सामयिक लेख, वार्ता का भी प्रसारण होता रहा है. अंतर्जाल पर 'शब्द सृजन की ओर', 'डाकिया डाक लाया' और 'आजमगढ़ ब्लागर्स एसोसिएशन' ब्लॉग का सञ्चालन भी कर रहे हैं।

श्री यादव के इस बहुआयामी व्यक्तित्व के चलते ही उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर "बाल साहित्य समीक्षा (संपादक : डा0 राष्ट्रबंधु, कानपुर)" व "गुफ्तगू (संपादक : मुo गाजी, इलाहाबाद)" पत्रिकाओं द्वारा विशेषांक जारी किये गए हैं तो शोधार्थियों हेतु व्यक्तित्व-कृतित्व पर इलाहाबाद से "बढ़ते चरण शिखर की ओर : कृष्ण कुमार यादव" (सं0- दुर्गाचरण मिश्र) पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है. श्री यादव को साहित्य विरासत की बजाय आत्मान्वेषण और आत्मभिव्यक्ति के संघर्ष से प्राप्त हुआ है। निरन्तर सजग होते आत्मबोध ने उनकी विलक्षण रचनाधर्मिता को प्रखरता और सोद्देश्यता से सम्पन्न किया है। उनकी रचनाओं में मात्र कोरी बौद्धिकता नहीं, जीवन सम्बन्धी आत्मीय अनुभूतियाँ हैं, संवेदनात्मक संस्पर्श हैं, सामाजिक संचेतना है, समय की जटिलताओं के मध्य भावों की संप्रेषणीयता है। सारगर्भित, सुन्दर, सुस्पष्ट व सार्थक रूप में इन रचनाओं में जीवन की लय है, विचार हैं, प्रभान्विति है, जिसके चलते अपनी रचनाओं में श्री यादव विषय-वस्तुओं का यथार्थ विशेलषण करते हुये उनका असली चेहरा पाठकों के सामने प्रस्तुत करते हैं। बकौल पद्मभूषण गोपाल दास ‘नीरज‘ -‘‘कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ कवि हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं।’’
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आज कृष्ण कुमार जी का जन्म-दिन है. कृष्ण कुमार जी को जन्मदिन पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं! आने वाला प्रत्येक नया दिन, आपके, आकांक्षा जी, अक्षिता (पाखी) और तन्वी के जीवन में अनेकानेक सफलताएँ एवं अपार खुशियाँ लेकर आए! इस अवसर पर ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह, वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, आदर्श, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि और समृद्धि के साथ सपरिवार, आजीवन आपको जीवन पथ पर गतिमान रखे !!

शुक्रवार, अगस्त 05, 2011

कैसे ही गाँवों का विकास ?

हल !
कि  जिसकी नोक से 
बेजान धरती खिल उठती
खिल उठता सारा जंगल 
चांदनी भी खिल उठती......
                गिरिजा कुमार माथुर की लिखी " ढाकबनी " कविता की  ये चंद पंक्तियाँ जिस हल के महत्व को बखूबी बयां कर रही है उसे आज किसान दीवाल पर टांग शहरों  कि तरफ मजदूर बनाने के लिये पलायन करता जा रहा है. कहा जाता है भारत गाँवों  का देश है  और उसकी आत्मा गाँवों में निवास करती है. देश की करीब अस्सी प्रतिशत जनसंख्या  गावों में निवास करती है. ये गाँव ही भारतीय अर्थवयवस्था के रीढ़ की हड्डी है और शहरों के विकास का रास्ता इन्हीं गाँवों से होकर जाता है

                मगर भारतीय गाँव आज इतने पिछड़े हुए क्यों है ? क्यों इनके विकास के लिये उचित प्रयास नहीं हुए ? ग्राम्य विकास में अडचने क्या है ? ना जाने कितने  सवाल जेहन में घूम जाते  है. आज आवश्यकता है गाँवों को उनके फटेहाल और गिरी हुई हालत से निकालकर एक समृद्धि  और उन्नत बनाने क़ी. गाँव सदियों से ही शोषण और दासता के शिकार रहे है. अंग्रेजी शासन काल में इन गावों की दशा पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया, उस समय जमींदारों और सेठ- साहूकारों ने खूब जमकर जनता का शोषण किया. स्वतंत्र प्राप्ति के बाद भी इसमें कुछ सुधार नहीं हुए और हमारे राजनेता इसे बखूबी जारी रख अपना पेट और घर भरते रहे

                 आर्थिक और सामाजिक संकरण कुछ ऐसे बुने गये की विकास के ज्यादातर प्रयास सिर्फ शहरों तक ही सीमित रह गयें. जहाँ शहरों में ऊँची- ऊँची अट्टालिकाये और फ्लैट बनते गये , अय्यासी और मौज मस्ती के सारे साधन मौजूद होते गये वहीं गाँव मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम हैं 
                 
                  भारत कृषि प्रधान देश है फिर भी किसानों को उन्नत किस्म के कृषि यन्त्र और खाद्य सही समय पर नहीं मिल पाते. अगर थोड़ा बहुत कुछ प्रयास हुए भी तो वह जरुरतमंदों  को कम जुगाड़ू लोगों तक ज्यादा पहुंचे. महंगे कृषि के आधुनिक  यन्त्र गरीब जनता उठा  नहीं सकती  इसलिए आज भी कृषि बैल  और जैविक  खाद्यों  पर आश्रित है
                 कृषि पूरी तरह से मानसून  पर निर्भर है. जिस साल सही समय पर  मानसून गये उस साल तो ठीक है वरना सब बर्बादसिंचाई के दूसरे साधन जैसे नहरकुवाँ ,और तालाब हर जगह उपलब्ध नहीं होते . इसका परिणाम ये होता है कि कहीं फसलें  पानी  के बिना  सुख  जाती है तो कहीं पानी  में डूबकर  नष्ट  हो  जाती है. ऐसे  में सिंचाई  के पारंपरिक  साधन जैसे कुवाँ ,और तालाब भी धीरे  धीरे  अब  खात्मा  होने  लगे  है. तालाब अब पट चुके है उनपर दबंगों का कब्ज़ा है. इन पारंपरिक साधनों जैसे कुवों  तालाबों  और नहरों को फिर से खोदकर बंजर जमीनों को फिर से हरा भरा किया जा सकता है.  

                    गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए है. प्राथमिक विद्यालयों की हालत तो सबसे ख़राब है. इसके अध्यापक गण ज्यादातर दायित्वहीन, अकर्मण्य और आलसी होते है. उनका मन स्कूल में कम और अपने घर- गृहस्थी में ज्यादा रहता हैवे खुद  शहरों में रहकर अपने बच्चों को पब्लिक  स्कूलों में पढ़ना पसंद करते है और  प्राथमिक  विद्यालयों को सिर्फ एक आफिस से ज्यादा समझते हुए आकार ड्यूटी बजा कर चले जाते है. महिला शिक्षक तो स्वीटर बुनाई और बातों में ही ड्युटी पूरी कर लेती है. मजाल जो कोई कुछ बोल दे, वरना मियाँ जी हाजिर हो जायेगे दल बल के साथ
                   आज गाँव शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए  है. शिक्षा के लिए उच्च  संस्थानों की कमी  है. ऊँचीं शिक्षा के लिये शहरों का ही रुख करना पड़ता है. ग्रामीण लड़के तो किसी तरह शहरों का रुख कर लेते है मगर ग्रामीण लडकियाँ आज भी इससे वंचित रह जातीं है और या तो उनकी पढ़ाई छुट जाती है या फिर प्राईवेट बी. . करना पड़ता हैकहीं- कहीं स्कूल इतने दूर होते है की माँ बाप चाहकर भी  अपने बच्चियों को सिर्फ इसलिए  स्कूल नहीं भेज पाते की स्कूल आना जाना आसान नहीं होता
                   गावों में स्वास्थ्य की भी समुचित व्यवस्था नहीं है. यहाँ ज्यादातर लोग झोला छाप डाक्टरों के भरोसे ही रहते है क्योकि सरकारी चिकित्सालय नाममात्र के ही है और हर जगह उपलब्ध नहीं होते . और जो है भी उसे नर्स और दाई ही ज्यादातर सम्हाले हुए है. डाक्टर लोग अक्सर शहर  में अपनी प्राईवेट प्रेक्टिस में ही  व्यस्त होते है. ऐसे  में झोलाछाप डाक्टर अपनी अज्ञानता  के चलते बीमारी को और बढ़ा देते है और ऊपर से पैसे तो ऐठते ही है. अगर दवा किस्मत से क्लिक कर गयी तो ठीक वरना गरीब जनता को फिर शहरों की तरफ ही भागना पड़ता है.
                                 बिजली की  कमी गावों की एक बड़ी समस्या है. पर्याप्त बिजली मिल पाने से किसान अपना कृषि कार्य समय पर नहीं कर पाते. बिजली कर्मचारियों   से मिली भगत कर बिजली चोरी बदस्तूर जारी है. शाम होते ही कटिया लग  जाना आम बात है. टूटी फूटी सड़के भी गाँवों की  एक समस्या है. आवागमन  के साधन  भी काफी कम है. गावों को अगर सड़क, स्वास्थ्य, बिजली, शिक्षा और  पानी की समस्याओं से आज निज़ात दिला दी जाये तो यहाँ का शांत, खुला और मनोरम वातावरण शहरों की धुल-धक्कड़ , भाग - दौड़   और तंग वातावरण की जगह  कितना अच्छा हो जाता .  अंत में पं. सुमित्रा नंदन 'पन्त' की ये कविता , जो इन गावों और उनके निवासियों का सच्चा और स्वाभाविक चित्र अंकित करती है .:-
भारत माता ग्राम वासिनी ! 
खेतों में फैला है , स्यामल धूल भरा मैला सा  आँचल
गंगा-यमुना के आंसू जल , मिटटी की प्रतिमा उदासिनी
भारत माता ग्राम वासिनी !


                  ये तस्वीर  आधुनिक भारत के एक  गाँव में बिजली नहीं होने पर  हरिकेन लेम्प के उजाले में बर्थडे मानते हुये की है.............



उपेन्द्र ' उपेन '