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बुधवार, जनवरी 09, 2013

शौहर 111 के तो बेगम 101 की



आजमगढ़ :: शौहर 111 के तो बेगम 101 की। जी हां, इसे सुनकर आप थोड़ा हैरत में जरूर पड़ गए होंगे, लेकिन यह सौ फीसदी सही है। आजमगढ़ का रहने वाला यह जोड़ा द...ुनिया की सबसे पुरानी जोडिय़ों में से एक हो सकता है। इस जोड़ी ने उम्र के मामले में शतक लगा लिया है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस के ड्राइवर रह चुके शौहर को 11 से अधिक भाषाएं आती हैं। वह जापानी, बर्मी, जर्मन, तमिल, तेलुगु, बंगाली समेत कई भाषाओं के जानकार हैं। इस ओल्डेस्ट जोड़ी के पास नेता जी से जुड़ी कई दिलचस्प सच्ची यादें भी हैं जो आज इतिहास के पन्नों में जगह तलाश रही हैं। 

 नेता जी के अंगरक्षक और पर्सनल ड्राइवर रहे आजमगढ़ के 111 साल के निजामुद्दीन एक बार फिर से इतिहास कायम कर सकते हैं। बहुत कम ही ऐसा देखने को मिलता है कि शौहर और बेगम दोनों उम्र के मामले में शतक लगा चुके हों। निजामुद्दीन नेता जी के साथ 12 सिलेंडर वाली गाड़ी चलाते थे। पत्नी अज्बुन निशा से मुलाकात बर्मा में हुई थी 100 वर्षों के ऊपर की ये जोड़ी अपने आप में ही एक इतिहास है।

  बुजुर्ग हो चले निजामुद्दीन के चार पुत्रों में अख्तर अली 85 वर्ष, अनवर अली 82 वर्ष और मोहम्मद अकरम 52 वर्ष के हैं। सबसे छोटे पुत्र असरफ बीमारी से पहले ही मौत हो चुकी है। ड्राइवर निजामुद्दीन ने बताया कि बर्मा में छितांग नदी के पास 20 अगस्त 1947 को उन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस को छोड़ा। उसके बाद से उनसे आज तक मुलाकात नहीं हुई। छोटे बेटे अकरम ने बताया कि बाबा की उम्र 111 की और अम्मी 101 साल की हो गयी है। यही नहीं वे 6 भाई बहन है जिसमें से एक भाई की बीमारी के चलते मौत हो गयी है। बाबा नेता जी की गाड़ी चलाया करते थे। 12 सिलेंडर लगी गाड़ी को नेता जी को जौहर बारू के सुल्तान ने उपहार स्वरुप दिया था। 111 साल के निजामुद्दीन ने लडख़ड़ाते जुबान से बताया कि नेता जी शाकाहारी थे। यही नहीं, वह आज़ादी के समय वेश बदलकर क्रांतिकारियों से मिलते थे। निजामुद्दीन ने बताया कि आज़ाद हिन्द फ़ौज का मैं ख़ुफिय़ा अधिकारी भी था।
 
शादी की बात पर 111 साल के निजामुद्दीन ने बताया कि उनका जब निकाह हुआ तो पत्नी अज्बुन निशा बर्मा में थीं। याददाश्त कमजोर होने के कारण ठीक से साल नहीं याद है, लेकिन शादी को लगभग 86 साल के ऊपर हो गए होंगे। नेता जी की मुलाकात एक बार जर्मनी में हिटलर से जब हुई थी, तब वह उनके साथ मौजूद थे। छोटे बेटे अकरम के मुताबित पिता जी ने देश की सेवा की, मगर उनको कोई मदद नहीं मिली आज तक। आज़ादी के बाद पूरा परिवार बर्मा चला गया था, लेकिन पिता जी को गांव की याद बहुत आती थी और 5 जून 1969 को शिप से पूरा परिवार मद्रास आ गया। आज भी गरीबी पूरे परिवार पर हावी है। इस कारण से कभी किसी की शिक्षा.दीक्षा नहीं हो सकी।

 बीएचयू हिस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रो राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि निजामुद्दीन नेता जी के खुफिया एजेंट तो थे ही, साथ में सबसे करीबी और आज़ाद हिन्द फ़ौज के अधिकारी भी थे। मुखर्जी कमीशन, खोसला कमीशन से लेकर शहनवाज कमिटी तक नेता जी के रहस्यमय ढंग से लापता हो जाने की जानकारी हासिल करने के लिए बनायीं गई, लेकिन बुजुर्ग हो चले निजामुद्दीन का बयान तक नहीं दर्ज किया गया।


मशहूर इतिहासकार तपन घोष ने भी अपनी किताब में निजामुद्दीन का जिक्र किया है। दु:ख की बात ये है कि निजामुद्दीन के पास आज़ाद हिन्द फ़ौज का आई कार्ड और डी एल होते हुए भी सरकार आखिर उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी क्यों नहीं मानती। उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन नहीं मिलती।

 गौरतलब है की मीडिया में खबरें आने के बाद प्रशासन ने आजमगढ़ महोत्सव के दौरान निजामुद्दीन को सम्मानित कर सरकारी कोरम को पूरा कर लिया था,लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा व पेन्शन सरकारी पेचीदगियों के चलते उन्हें न मिल सका। निजामुद्दीन आज उम्र के आखिरी पड़ाव में गुमनामी में जी रहें है।
 
( साभार : भास्कर)
(चित्र साभार : आजमगढ़ लाइव)

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